Mf hussain biography hindi old

मकबूल फ़िदा हुसैन

मकबूल फ़िदा हुसैन
जन्म 17 सितंबर [1][2][3]
पंढरपुर
मौत 9 जून [4][5][6][7]
लंदन
मौत की वजह प्राकृतिक मृत्यु हृदयाघात
नागरिकताभारत,[8]क़तर[9]
पेशा चित्रकार,[10]फ़िल्म निर्देशक, राजनीतिज्ञ, कलाकार,[11]पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्माता, फोटोग्राफर
धर्मइस्लाम
बच्चेशमशाद हुसैन
पुरस्कारपद्म भूषण, कला में पद्मश्री श्री, पद्म विभूषण

मक़बूल फ़िदा हुसैन (जन्म सितम्बर १७, १९१५, पंढरपुर), (मृत्यु जून 09, , लंदन),एम एफ़ हुसैन के नाम से जाने जाने वाले भारतीय चित्रकार थे।

एक कलाकार के तौर पर उन्हे सबसे पहले १९४० के दशक में ख्याति मिली। १९५२ में उनकी पहली एकल प्रदर्शनी ज़्युरिक में हुई। इसके बाद उनकी कलाकृतियों की अनेक प्रदर्शनियां यूरोप और अमेरिका में हुईं।

१९६६ में भारत सरकार ने उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया। उसके एक साल बाद उन्होने अपनी पहली फ़िल्म बनायी: थ्रू द आइज़ ऑफ अ पेन्टर (चित्रकार की दृष्टि से)। यह फ़िल्म बर्लिन उत्सव में दिखायी गयी और उसे 'गोल्डेन बियर' से पुरस्कृत किया गया।

जीवन परिचय

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हुसैन बहुत छोटे थे जब उनकी मां का देहांत हो गया। इसके बाद उनके पिता इंदौर चले गए जहाँ हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा हुई। बीस साल की उम्र में हुसैन बम्बई गये और उन्हे जे जे स्कूल ओफ़ आर्ट्स में दाखला मिल गया। शुरुआत में वे बहुत कम पैसो में सिनेमा के होर्डिन्ग बनाते थे। कम पैसे मिलने की वजह से वे दूसरे काम भी करते थे जैसे खिलोने की फ़ैक्टरी में जहाँ उन्हे अच्छे पैसे मिलते थे। पहली बार उनकी पैन्टिन्ग दिखाये जाने के बाद उन्हे बहुत प्रसिद्धी मिली। अपनी प्रारंभिक प्रदर्शनियों के बाद वे प्रसिद्धि के सोपान चढ़ते चले गए और विश्व के अत्यंत प्रतिभावान कलाकारों में उनकी गिनती होती थी।

एमएफ़ हुसैन को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर पहचान के दशक के आख़िर में मिली। वर्ष में वे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप में शामिल हुए। युवा पेंटर के रूप में एमएफ़ हुसैन बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट्स की राष्ट्रवादी परंपरा को तोड़कर कुछ नया करना चाहते थे। वर्ष में उनकी पेंटिग्स की प्रदर्शनी ज़्यूरिख में लगी। उसके बाद तो यूरोप और अमरीका में उनकी पेंटिग्स की ज़ोर-शोर से चर्चा शुरू हो गई। वर्ष में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष में उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म थ्रू द आइज़ ऑफ़ अ पेंटर बनाई। ये फ़िल्म बर्लिन फ़िल्म समारोह में दिखाई गई और फ़िल्म ने गोल्डन बेयर पुरस्कार जीता।

वर्ष में साओ पावलो समारोह में उन्हें पाबलो पिकासो के साथ विशेष निमंत्रण देकर बुलाया गया था। में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया तो वर्ष में उन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया गया। भारत सरकार ने वर्ष में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 92 वर्ष की उम्र में उन्हें केरल सरकार ने राजा रवि वर्मा पुरस्कार दिया। क्रिस्टीज़ ऑक्शन में उनकी एक पेंटिंग 20 लाख अमरीकी डॉलर में बिकी। इसके साथ ही वे भारत के सबसे महंगे पेंटर बन गए थे। उनकी आत्मकथा पर एक फ़िल्म भी बन रही है।

देवी-देवताओं, भारतमाता की पेंटिंग पर विवाद

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भारतीय देवी-देवताओं पर बनाई, इनकी विवादित पेंटिंग को लेकर भारत के कई हिस्सों में उग्र प्रदर्शन हुए। शिवसेना ने इसका सबसे अधिक विरोध किया।[12]आर्य समाज ने भी इसका कड़ा विरोध किया और आर्य समाज के एक कार्यकर्ता और हैदराबाद के हिन्दी दैनिक स्वतंत्र वार्ता के पत्रकार तेजपाल सिंह धामा [13][14][15][16] भारत माता की विवादित पेंटिंग बनाने पर एम एफ हुसैन से एक पत्रकार वार्ता के दौरान उलझ बैठे थे,[17] बाद में में हुसैन ने हिन्दुस्तान छोड़ दिया था।[18] और तभी से लंदन में रह रहे थे। हुसैन से उलझने वाले पत्रकार धामा को बाद में मुंबई में एक कार्यक्रम में शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे द्वारा इन्हें सन आफ आर्यवर्त कहकर संबोधित किया। में कतर ने हुसैन के सामने नागरिकता का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। में भारत माता पर बनाई पेंटिंग्स के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमे पर न्यायाधीश की एक टिप्पणी "एक पेंटर को इस उम्र में घर में ही रहना चाहिए" जिससे उन्हें गहरा सदमा लगा और उन्होंने इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील भी की। हालांकि इसे अस्वीकार कर दिया गया था।

निधन

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9 जून को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।।[19][20] उनका निधन लंदन के रॉयल ब्राम्पटन अस्पताल में हुआ, जहां वह से लंदन में ही रह रहे थे। जीवन के अंतिम दिनों में वे विभिन्न रोगों से ग्रसित हो गए थे।

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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